Saturday, April 20, 2024

1-32 धनुषा मंदिर धनुषा धाम नेपाल


धनुषा नेपाल का प्रमुख जिला है । धनुषा नाम ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। दरअसल ये भारतीय संस्कृति के उस संधिकाल का प्रतीक है जब विष्णु के एक अवतार परशुराम और उनके बाद के अवतार श्री राम का परस्पर मिलन हुआ था । धनुषा धाम में आज भी पिनाक धनुष के अवशेष पत्थर के रूप में मौजूद हैं ।

धनुषा का इतिहास

वाल्मीकि रामायण में पिनाक धनुष भंग का विवरण काफी विस्तार से दिया गया है । त्रेतायुगीन जनक सीरध्वज मुनि विश्वामित्र और श्री राम को पिनाक धनुष का इतिहास बताते हुए कहते हैं कि मेरे पूर्वज देवरात को भोलेनाथ ने यह संभाल कर रखने के लिये दिया था । इसकी विशेषताओं का उल्लेख करते हुए मिथिला नरेश कहते हैं कि इस धनुष का प्रयोग मेरे वंश में कोई नहीं कर सका क्योंकि इसे उठाना और प्रत्यंचा चढ़ा पाना किसी के वश की बात नहीं । इसका आकार काफी विशाल है । इसे आठ पहियों वाले संदूक में रखकर मेरे पूजा घर में रखा गया है । हमारे परिवार की पुत्रियां धनुष वाले संदूक के चारों तरफ सफाई करती रहीं हैं ।

सीता उठा लेती थीं पिनाक धनुष

मिथिला नरेश कहते हैं कि बड़े आश्चर्य की बात है कि जबसे मेरी भूमिजा पुत्री सीता कुछ बड़ी हुई है तब से त वह बड़ी सहजता से ना केवल संदूक को इधर उधर आसानी से कर देती है बल्कि पिनाक धनुष को भी यहां से उठा कर वहां रख देना और चारों तरफ की सफाई करने में इसे कोई परेशानी नहीं होती ।

सीता का विवाह पिनाक धनुष तोड़ने वाले से क्यों

जानकी का यही गुण देख कर मिथिला नरेश ने इसका विवाह उस व्यक्ति से करने का निश्चय किया जो पिनाक धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने में समर्थ हो । इसकी घोषणा कर दी गई लेकिन बड़े दुख की बात रही कि अनेक पुरुष आये लेकिन कोई भी समर्थ साबित नहीं हुआ ।

वाल्मीकि रामायण में जनक के यज्ञ स्थल यानि वर्तमान जनकपुर के जानकी मंदिर के निकट अवस्थित मैदान रंगभूमि में इस धनुष को लाने के लिये सैकड़ों आदमियों को परिश्रम करना पड़ा । सैकड़ो आदमी आठ पहिये वाले संदूक को रस्सी से खींच कर यहां लाने में समर्थ हुए ।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब पिनाक धनुष टूटा तो भयंकर विस्फोट हुआ था। धनुष के टुकड़े चारों ओर फैल गए थे। उनमें से कुछ टुकडे़ यहां भी गिरे थे। मंदिर में अब भी धनुष के अवशेष पत्थर के रूप में माने जाते हैं। त्रेता युग में धनुष के टुकड़े गिरे तो विशाल भू भाग में लेकिन इसके अवशेष को सुरक्षित रखा अब तक केवल धनुषा धाम के निवासियों ने । भगवान शंकर के पिनाक धनुष के अवशेष की पूजा त्रेता युग से अब तक अनवरत यहां चलती रही जबकि अन्य स्थान पर पड़े अवशेष लुप्त हो गये ।

धन्य हैं धनुषा के लोग जिन्होंने आज तक न केवल स्मृति अपितु ठोस साक्ष्य भी संभाल कर रखा हुआ है । हम शिवभक्त समाज को सादर नमन करते हैं ।

आप भी दर्शन कीजिये ।

पिनाक धनुष का रहस्य

लोक मान्यता के अनुसार दधीचि की हड्डियों से वज्र, सारंग तथा पिनाक नामक तीन धनुष रूपी अमोघ अस्त्र निर्मित हुए थे। वज्र इंद्र को मिला था । सारंग विष्णुजी को मिला था जबकि पिनाक शिवजी का था जो धरोहर के रूप में जनक जी के पूर्वज देवरात के पास रखा हुआ था।

इसी पिनाक धनुष को श्रीराम ने तोड़ कर विघटित कर दिया जबकि इसके विघटन की सूचना पाकर सारंग धनुष का प्रयोग करने वाले परशुराम सत्य की पुष्टि के लिये तुरंत मिथिला की ओर रवाना हो गये ।

दोहरि घाट में हुआ विष्णु के दो अवतारों का मिलन

दोहरि घाट ( क्रम संख्या 1- 40 ) में राम और परशुराम का मिलन हुआ । विष्णु के नवोदित अवतार श्री राम ने अपना सारंग धनुष परशुराम से वापस ले लिया ।

ग्रंथ उल्लेख

वा.रा. 1/67/17, 19, 20 मानस 1/260/3 से 1/261/1

पिनाक धनुष के बारे में विस्तार से जानने के लिये देखिये श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास द्वारा

निर्मित

धारावाहिक जहँ जहँ चरण पड़े रघुवर के अंक 14

जानिये पिनाक धनुष का रहस्य

जहँ जहँ चरण पड़े रघुवर के १४वीं कड़ी यहां प्रस्तुत है । श्री राम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के लिये डॉ राम अवतार द्वारा प्रस्तुत इस अंक में नेपाल के धुनषा जिले में अवस्थित धनुषा मंदिर और मणि मण्डप तीर्थों की कथा प्रस्तुत की गयी है ।

वाल्मीकि रामायण में प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर इस अंक में श्री राम चंद्र द्वारा धनुष भंग प्रसंग की वैज्ञानिक दृष्टि से छानबीन की गयी है । जिस धनुष को हम आप रामलीलाओं में मंचित दृश्य के माध्यम से जानते और पहचानते हैं उसके स्थान पर आदिकवि वाल्मीकि इस धनुष के जिन तथ्यों को उजागर करते हैं उसकी सम्यक व्याख्या इस धारावाहिक में की गयी है ।

इसे आप भी देखें और सभी रामभक्तों और शिव भक्तों को देखने के लिये प्रेरित करें ।

जय सियाराम

Sharing is caring!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *