2-63 सुतीक्ष्ण आश्रम सप्तश्रृंगी पर्वत नासिक महाराष्ट्र
सुतीक्ष्ण मुनि के कई आश्रम मिले हैं किन्तु लगता है कि श्रीराम की सुतीक्ष्ण मुनि से यहीं भेंट हुई थी। श्रीराम 10 वर्ष दण्डक वन में घूमकर पुनः इसी आश्रम में आये थे।
वा.रा. 3/7, 8 दोनों पूरे अध्याय 3/11/28 से 44 तक, मानस 3/9/1 से 3/11 दोहे तक
टिप्पणी
प्रयास किया गया है कि सभी स्थलांे का क्रम श्री राम यात्रा क्रम से दिया जाए किन्तु आधुनिक मार्गों को ध्यान में रखते हुए यात्री को शनेश्वर मंदिर राक्षस भुवन से लेकर सर्वतीर्थ जटायु आश्रम तक का यात्रा क्रम इस प्रकार बनाना चाहिए इस से समय तथा धन की बचत होगी, 153 राक्षस भुवन – 163 सिद्धेश्वर – 171 घटेश्वर 172 मुक्तेश्वर – 170 रामेश्वर काय गांव – 155 रामेश्वर पाटौदा – 154 अगस्त आश्रम अंकई – 167 मृग व्याधेश्वर – 166 बाणेश्वर – 168 नांदूर मध्यमेश्वर – 169 रामेश्वर खाण्ड गांव – 165 रामेश्वर कोठुरे – 63 सुतीक्ष्ण आश्रम – 64 सप्तश्रंगी मंदिर – 156 अगस्त आश्रम पिंपलनारे – 160 रामसेज पर्वत – 159 सीता सरोवर – 157 पंचवटी – 158 जनस्थान – 161 कुशावृत तीर्थ – 162 रामकुण्ड – 173 सर्व तीर्थशनैश्वर मंदिर से अगस्त्य आश्रमः- राक्षस भुवन-उमापुर-नेवासा फाटा-गंगापुर- वैजापुर-येवला-मनमाड़- अंकई किला। एम. एच. एस. एच. 44 से 196 कि.मी.
विशेष टिप्पणीः
श्री रामचरित मानस के अनुसार श्रीसीता राम जी सुतीक्षण मुनि आश्रम से सीधे अगस्त्य मुनि के आश्रम (अगस्त्येश्वर मंदिर) गये। अतः वहाँ तक मानस से कोई संदर्भ नहीं मिलते। गोस्वामी जी द्वारा वर्णित सकल मुनि (मा.3/9 दोहा) दण्डक वन में थे। उनकी चर्चा जन श्रुतियों के आधार पर ही करेंगे। क्योंकि उन सकल मुनियों के नाम, ग्राम, आश्रम आदि का कोई वर्णन नहीं दिया है। हां जन श्रुतियांें में वे आश्रम आज भी जीवंत है तथा उनके सभी स्थलों पर अवषेष तथा लोक कथाएँ मिलती हंै।रामायण के अरण्य काण्ड के 8,9,10 अध्यायों के अनुसार श्रीराम सुतीक्ष्ण आश्रम से प्रस्थान करते हैं। मार्ग में राक्षसों के वध संबधी प्रतिज्ञा पर मां सीता से श्रीराम चर्चा करते हैं। इन अध्यायों में केवल यही चर्चा हैं। मार्ग का कोई संकेत नहीं है। इन दस वर्षांे में प्रथम संकेत पंचाप्सर का मिलता है। अतः अब उनका विवरण देखते हैं। विषेष संकेत के रूप में वा.रा. 3/11/21 से 28 तक देखें।
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